मन अघोर कुख्यात कबाड़ी,
थके-उनींदे मालकोंस में खेंचत राग पहाड़ी
सरहद पै विचारधारा की पतितपावनी झाड़ी
आगे है बबूल का जंगल करै शिकार खिलाड़ी
परमपूज्य मतिहार हरामी उस्तादों की बाड़ी
अर्धनारि दुस्साशन बैठा खींचै सबकी साड़ी
जै-जै धुनि चहुँ ओर, अकेले हमने हरकत ताड़ी ।