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आग और दादियाँ / तुलसी रमण


पहले-पहल शर्माती हैं
                     चश्मों में
नंगे सिर लड़कियों को देखकर भी
उन्हें खुद को शर्म आती है

भरे परिवार में
चूल्हे के पीछे बैठी
एक हाथ में चिमटा
दूसरे मे कड़छी लिए
आग से आग जलातीं
आस्था की गठड़ियाँ
भव्य हैं दादियाँ

अब हमें मर जाना चाहिए___
                कभी काँपती-सी कहती हैं
और अच्छी तरह पकड़ लेती हैं
साथ चलते बच्चे का हाथ

नवम्बर 1990