Last modified on 10 अप्रैल 2017, at 14:11

आग पर कदम / हरकीरत हीर

तुमने मेरे
जले हाथों में
भर दी है फिर से अगन

जब तुम
जला रहे थे
मेरे हाथों की लकीरें
उस वक़्त मैं देह के ब्रह्माण्ड से
चुन रही थी
सुलगते अक्षरों के शब्द

अब नहीं तलाशेगी मेरी क़लम
मुहब्बत का अर्थ लकीरों में
और न ही मैं इस आग की ख़ातिर
हवा से उधारी लूँगी
शीतलता

अब
जब भी रिसता है
बूँद बूँद इन हाथों से दर्द
ये कर देते हैं अपने ही ज़ख़्मों का
अनगिनत अनुवाद

इससे पहले कि
फफोले फूटकर पानी बह जाये
और मैं इस पीड़ा से मुक्त हो जाऊँ
मैं बो देना चाहती हूँ
नज़्मों की छाती में
उन तमाम सुलगते अक्षरों की
अगन

अब मैं
देखना चाहती हूँ
ख़ुद को तुमसे दूर
आग पर कदम रखकर