दिन भर उत्पात हैं शहर में
कौन टिके रानी के घर में
लाख के किले ऊँचे
आग लगी पानी में
जल रही मशालें हैं
संतों की बानी में
भोर-साँझ-रात सभी डूबे हैं डर में
ठाँव सभी जलते हैं
कोई भी छाँव नहीं
भाग कर बचे कैसे
परजा के पाँव नहीं
गली-चौक अगिया-बैताल की लहर में
झुलस रहे देवी के चौरे
कोठारे सब
क्या करें
हुए बूढ़े ताल के किनारे अब
शामिल हैं खेत-कुएँ राख के सफ़र में