भयभीत करने लगी है
निकटता
स्नेहिल सम्बोधनों से
सशंकित होने लगी हूँ
आदरसूचक शब्द
व्यंग्य प्रतीत होते हैं
बाहर न निकलने के प्रण के साथ
झोंक रखा है मैने स्वयं को
अनुभवों की भभकती अगिन में
और पूछती हूँ-
जल, तुम कहाँ हो?
भयभीत करने लगी है
निकटता
स्नेहिल सम्बोधनों से
सशंकित होने लगी हूँ
आदरसूचक शब्द
व्यंग्य प्रतीत होते हैं
बाहर न निकलने के प्रण के साथ
झोंक रखा है मैने स्वयं को
अनुभवों की भभकती अगिन में
और पूछती हूँ-
जल, तुम कहाँ हो?