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आज़ाद हैं हम / दिविक रमेश

खुले सांड से

आज़ाद हैं हम

और वे भी।

कितना ख़ुशगवार है मौसम!


चोर सिपाही
डाकू राही
नेता जनता
रक्षक हन्ता


सभी हुए आज़ाद
सभी हैं भाई-भाई
एक घाट पै पाणी पिवैं
लोग-लुगाई


बोल सियावर रामचनदर की जय
कि जय हो
खिचड़ीपुर की
नौटंकी की।


जहाँ ग़ाली और आशीर्वाद

साथ-साथ स्वतन्त्र हों,

जहाँ पेड़-पौधे

हवा के रुख में

झुकते और झूमते हों

वहाँ आज़ादी नहीं तो क्या है?


तै इस्सी आज़ादी
मिल्लै सभी को राम
अपणी तै सुभकामणा
हो जग का कल्याण


बजा कै ढोल

कि दे कै थाप

कूद जा

काच्चे छोरे स्याम

तखत पै

होवण दे संगराम


सियावर रामचनदर की जय
कि जय बोलो
खिचड़ीपुर की नौटंकी की।