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आजुक सत्य / रमानन्द रेणु

 
आइ बाट पर चलैत
सभ लोक अनचिन्हार लगैत अछि
गाम-घर टोल-पड़ोस
आ देस-कोसक
सगरो लोकक मुहेंठ पर
विवशताक धुपछाँही पसरल छैक

मेघ आकाशमे
चकभाउर करैत अछि
अहाँ किऐ एना सरंगपताल देखा रहल अछि ?

हमर हाथ-पैर सुन्न अछि
अहाँ केहन धूर्त छी
से हम आइए बुझलहुँ अछि

सगरो संसारमे
दीप टिमटिमाइत अछि
तैयो अहाँ अनभुआर बनल छी ?

गाछक धोधरिमे
सैंतल चिड़ैक बच्चाकें
साँप गिरि गेल अछि
मोनक प्रत्येक दोग सान्हिमे
पसाही लागल छैक
बताह कखन-की करत
तकर कोन ठेकान ?

कनिएँ थम्हू
हम पहिरन बदलि लैत छी