Last modified on 25 मई 2011, at 20:13

आजु महामङ्गल कोसलपुर सुनि नृपके सुत चारि भए / तुलसीदास

राग बिलावल

आजु महामङ्गल कोसलपुर सुनि नृपके सुत चारि भए |
सदन-सदन सोहिलो सोहावनो, नभ अरु नगर-निसान हए ||
सजि-सजि जान अमर-किन्नर-मुनि जानि समय-सम गान ठए |
नाचहिं नभ अपसरा मुदित मन, पुनि-पुनि बरषहिं सुमन-चए ||
अति सुख बेगि बोलि गुरु भूसुर भूपति भीतर भवन गए |
जातकरम करि कनक, बसन, मनि भूषित सुरभि-समूह दए ||
दल-फल-फूल, दूब-दधि-रोचन, जुबतिन्ह भरि-भरि थार लए |
गावत चलीं भीर भै बीथिन्ह, बन्दिन्ह बाँकुरे बिरद बए ||
कनक-कलस, चामर-पताक-धुज, जहँ तहँ बन्दनवार नए |
भरहिं अबीर, अरगजा छिरकहिं, सकल लोक एक रङ्ग रए ||
उमगि चल्यौ आनन्द लोक तिहुँ, देत सबनि मन्दिर रितए |
तुलसिदास पुनि भरेइ देखियत, रामकृपा चितवनि चितए ||