मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
बधैया
आज अनंद भलइ<ref>हुआ</ref> हमर नगरी।
मोर दादा लुटावे अनधन सोना, मोर दादी लुटावे मोती के लरी<ref>लड़ी</ref>॥1॥
बाबूजी लुटावथ<ref>लुटाते हैं</ref> कोठी-अटारी, मइया लुटाबे फूल के झरी।
मोबारख<ref>मुबारक। बधाई के अर्थ में प्रयुक्त बरकत का हेतु, सौभाग्यशाली</ref> होय होरिला तोहरो गली॥2॥
शब्दार्थ
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