बहुत दिनों के बाद
आज ऐसा हुआ है
कि उस एक मेरे जाने हुए
आलोक ने मुझे छुआ है।
यह तो जानता रहा हूँ
कि जीवन एक आवारा गर्म झोंके पर
उड़ता हआ भुआ है
पर यह कि इस उड़ने का भी सहारा
किसी की दुआ है-
मानूँ, तुम्हारे सामने भी, बेचारा
अभिमान छोड़ कर मान लूँ
कि सच बहुत दिनों के बाद
आज ऐसा हुआ है...
नयी दिल्ली, 8 मई, 1980