आज कितना गर्म मौसम!
जल रहा है फूल का तन
और आंचित हो रहा मन!
सांस व्याकुल हो रही क्यों?
आस धीरज खो रही क्यों?
नीड़ में हलचल अजब है
आंख रस कण बो रही क्यों?
मीत कब आकार होंगे?
स्वप्न कब साकार होंगे?
ढेर सारे ऊगते प्रश्न
और शंकित हो रहा मन!
आज कितना गर्म मौसम!
आग धधकी है गगन में
धूल उड़ती है पवन में
प्यास धरती की बढ़ी है
राखजमती है हवन में।
गुम गया गौरव अकिंचन
प्राण किसको दे समर्पण?
हैं अपशकुन ही अपशकुन
और शापित हो रहा मन!
आज कितना गर्म मौसम!
मौन कहते हैं कथाएँ
कौन समझे ये व्यथाएँ?
शब्द ही जब साथ छोड़े
काव्य कैसे हों ऋचाएँ।
गीत धारा मोड़ना है
धार से तट जोड़ना है
सर्जना है व्याकरण प्रण
और कंपित हो रहा मन!
आज कितना गर्म मौसम!
कुलबुलाती भावनाएँ
कसमसाती कामनाएँ
गुनगुनाने के लिए ही
कुनमुनाती कल्पनाएँ।
विश्वास की अपनी डगर
हैं आस्थाएँ भी अमर
व्याप्त कण-कण में प्रकम्पन
और प्रेरित हो रहा मन!
आज कितना गर्म मौसम!