Last modified on 25 अप्रैल 2011, at 14:20

आज तुम्हारे आँगन में / शैलप्रिया

आज तुम्हारे आँगन में
चाँदनी विहँसेगी, हवाएँ लरजेंगी
तुम्हारी आँखों में प्रसन्नता के आँसू होंगे
और मेरे लिए
उदास है यह शाम
हवाएँ भी चुप हैं
कमरे के हर कोने में टीस की संवेदना है

घूरती हूँ शून्य
बिखरा है सन्नाटा
सन्नाटे के सिवा और कुछ
नहीं है मेरे पास
जो कुछ कही अपना था
खो गया व्यथाओं के बीच
रह गई शेष मैं
अस्थि-चर्म-कंकाल-शव