Last modified on 22 अक्टूबर 2020, at 19:48

आज नहीं तो कल / अरविन्द यादव

आज दम तोड रही हैं
मानवता के लिए घातक
वह परम्पराएँ
जो डसती आ रही हैं
सदियों से
मानव और मानवता को,
उस कुचले सांप की मानिंद
जो फडफडाता है
थोडी देर अपनी पूंछ
कुचले जाने के बाद भी।

शायद यह सोचकर
कि फिर से
उडेल सके अपना संचित विष
स्वस्थ समाज के अंश पर,
यह भूलकर कि कुचला गया है वह
मानवता के लिए
इसी घातक प्रवृत्ति पर।

काश!
वह सीख पाता
जीने का सलीका
अपने ही कुल के दोमुंहे से
तो आज नहीं होता
उसका यह हश्र।

मगर वह भूल गया
यह कटु यथार्थ
कुचले ही जाते हैं
'घातक' मानवता के
आज नहीं तो कल...