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आज फिर गाँव जाके आया हूँ / कैलाश मनहर

आज फिर गाँव जाके आया हूँ ।
सब से नज़रें चुराके आया हूँ ।

जिस की देहरी पे मेरा काबा है,
मैं वहीं सिर झुका के आया हूँ ।

सुखा रहा था जिसे वक़्त अपनी आँखों से,
वो एक बूँद, नदी में गिरा के आया हूँ ।

तुझे भी रेत से है प्यार बहुत जानता हूँ,
मैं अपनी रूह उसी में छुपाके आया हूँ ।