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आज भी / ओएनवी कुरुप

आज भी आकाश घना है
कहीं सलीब पर
आज भी हमें प्यार करनेवाला
छटपटा रहा होगा

आज भी किसी रईस के भोज में
ग़रीब के मेमने को छीनकर
कोई वध कर रहा होगा उसका

आज भी कहीं
अपनों के ख़ून से कोई
आँगन की लीपा-पोती कर रहा होगा

आज भी आकाश घना है
कहीं एक बेचारी बहन पर
कोई अत्याचार कर रहा होगा

आज भी पड़ोसी के
अंगूर के बाग को
कोई तबाह कर रहा होगा

आज भी हज़ारों गालों पर
खिलनेवाले केसर के फूलों को कोई
हड़प रहा होगा

आज भी थोड़ी-से मृत सपनों के लिए
किसी के सीने में
जल रही होगी चिता

आज भी ख़ुशी से
उड रहे नन्हे कपोत को
कोई बाण से गिरा रहा होगा

आज भी एक अधनंगे
बूढ़े को नमस्कार कर
कोई गोली चला रहा होगा

आज भी
आकाश घना होने पर
मेरा मन अँधकार से भर जाता है
क्या आज सूर्यास्त के बाद
सूरज फिर नहीं उगेगा ।

मूल मलयालम से अनुवाद : संतोष अलेक्स