Last modified on 26 नवम्बर 2019, at 23:21

आज यह उपवास धारा / गरिमा सक्सेना

चाँद की करते प्रतीक्षा, हैं विकल ये द्वय नयन

माँग में तुम, पायलों में, नथ, महावर, बालियों में
लाल जोड़ा, लाल बिंदी, तुम खनकती चूड़ियों में
प्रीत की मणियों व डोरी से गुंथे गलहार में हो
इन सभी शृंगार के तुम अर्थ में, आधार में हो
तुम युगों की हो तपस्या प्रिय तुम्हीं वरदान धन

भाग्य को सौभाग्य का पथ, प्रिय तुम्हीं ने है बनाया
इक तुम्हें पाकर हृदय ने, ज्यों सकल संसार पाया
अन्न-जल का त्याग कर प्रिय आज यह उपवास धारा
चाँद से माँगू दुआयें और वारूँ नेह सारा
व्रत अगन में तन तपाकर कर रही मन से हवन

साथ यह अपना अमर हो, नेह जीवन भर रहे प्रिय
आस्था विश्वास की यह गंग जीवन भर बहे प्रिय
चाँद औ तारे बनेंगे साक्षी इस प्यार के प्रिय
गीत होंगे अब हमारे प्यार के, त्योहार के प्रिय
प्रेम के इस पुण्य पथ से जुड़ रहे धरती-गगन

थाल से कुमकुम उठाकर मांग में तुम साज देना
चांद कहकर चांद के सम्मुख मुझे आवाज देना
रस्म करवा की निभाकर जल तुम्हारे हाथ पाऊँ
चाहती हूँ हर जनम में बस तुम्हारा साथ पाऊँ
सात वचनों को निभाने का पुन: लेंगे वचन