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आज री कविता / वासु आचार्य

मौकळा दिन हुयग्या
नीं उतरी कोई कविता
हियै जियै

अर माँडण लागग्यौ
चिड़कली कबूतर रा चितराम
कोरै कागद

नीं ठा-
मनै बचपणै सूं ई
खुलै अकास
खुली पांख्यां
ऊंचौ मूंडो कियौड़ा उडता
पाखी क्यूं सुहावै

पण-ओ-की
कागद माथै
जका चितराम उतरया
बां मांय नीं तो चिड़कली ई
अर नीं ई कबूतर
अर नीं ई कोई
दूजौ पखेरू
कागद रै ठीक बिचाळै
काळजै री ठौड़
मण्डग्या हा-फण उठाया
काळादराख जानलैवा
जैरीला नाग

हां-म्हारै जी मांय
जकी चिड़कली अर कबूतर हा
बां री ख्रिंण्डयौड़ी
पांख्या रा फूंतका
पड्या हा-फणधारी री पूंछ खनै

म्हारी आंख्यां
फाटी री फाटी रैयगी

सायत-आ‘ई‘ज है
आज री कविता
सायत् ....