मौकळा दिन हुयग्या
नीं उतरी कोई कविता
हियै जियै
अर माँडण लागग्यौ
चिड़कली कबूतर रा चितराम
कोरै कागद
नीं ठा-
मनै बचपणै सूं ई
खुलै अकास
खुली पांख्यां
ऊंचौ मूंडो कियौड़ा उडता
पाखी क्यूं सुहावै
पण-ओ-की
कागद माथै
जका चितराम उतरया
बां मांय नीं तो चिड़कली ई
अर नीं ई कबूतर
अर नीं ई कोई
दूजौ पखेरू
कागद रै ठीक बिचाळै
काळजै री ठौड़
मण्डग्या हा-फण उठाया
काळादराख जानलैवा
जैरीला नाग
हां-म्हारै जी मांय
जकी चिड़कली अर कबूतर हा
बां री ख्रिंण्डयौड़ी
पांख्या रा फूंतका
पड्या हा-फणधारी री पूंछ खनै
म्हारी आंख्यां
फाटी री फाटी रैयगी
सायत-आ‘ई‘ज है
आज री कविता
सायत् ....