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आज री भारमली / कुंदन माली

आज री भारमली
साज-सिणगार री
हवेलियां सूं
पचासों कोस
दूरो रेईन
घरबार री खातिर
परवार री खातिर
हर बात री खातिर
रोज-रोज
भार तोके है

भूखे पेट
प्रेम भी
कणी ने
कितरी’क देर
ओपे है

आज री भारमली
आपणै घरबार
परवार
हर बात
हर भांत री
जिम्मेदारी थामै

 आज री भारमली
अस्तित्व रै
आंगणै में
नित दिन हरख अर
उम्मेदां रा
नूंवा बीज
रौपै है

अब
इतियास री
भारमली रैई
तो वीं नै
कुण टोके है ?