आज वो भी आये ।
जिनकी बाट जोहते-जोहते, दरवाजा बूढ़ा हो गया था,
जिसकी एक मुस्कुराहट को पाने के लिए, भँवरों ने अपनी सांसे रोक ली थी,
जिसकी आंखों की रौशनी की खातिर, जुगनुओं ने चमकना छोड़ दिया था,
आज वो भी आये ।
जिसकी भीनी-भीनी खुशबू की कमी, गुलाबों ने महसूस की थी,
जिसके इंतज़ार में तितलियों ने, हवा में लहराना छोड़ दिया था,
जिसकी राह तकते-तकते, अहिल्या बन गया था एक शख्स,
आज वो भी आये ।
जिसके कारण बगीचे की दूब ने, अपनी हरियाली छोड़ दी थी,
जिसके कारण कोहरे के रंगों ने, अपना वजूद समेट लिया था,
जिसके कारण एक बैचेन दिल, नज़्मों में चैन ढूंढता फिरता था,
आज वो भी आये ।