आज है, कल हुई, हुई, न हुई
छांव हर पल हुई, हुई, न हुई
एक पहेली है ज़िंदगी अपनी
क्या पता हल हुई, हुई, न हुई
देह का फ़लसफ़ा बताता है
कल ये संदल हुई, हुई, न हुई
जो नदी तुझमें - मुझमें बह्ती है
उसमें कलकल हुई, हुई, न हुई
ये नुमाइश तो चार दिन की है
फिर ये हलचल हुई, हुई, न हुई
मानकर घास रौंद मत इसको
कल ये मखमल हुई, हुई, न हुई
जितना जी चाहे उतनी पी ले तू
फिर ये बोतल हुई, हुई, न हुई