Last modified on 29 फ़रवरी 2012, at 17:04

आठवां सुर / नौशाद लखनवी

रंग नया है लेकिन घर ये पुराना है

ये कूचा मेरा जाना पहचाना है

क्या जाने क्यूं उड़ गए पंक्षी पेड़ों से

भरी बहारों में गुलशन वीराना है