Last modified on 10 अगस्त 2012, at 12:01

आतंक / अज्ञेय

ऊपर साँय-साँय
बाहर कुछ सरक रहा
दबे पाँव : अन्धकार में
आँखों के अँगारे वह हिले-
वहाँ-क्या उतरा वह?
रोंए सिहर रहे,
ठिठुरा तन : भीतर कहीं
धुकधुकी-वह-वह-क्सा पसरा वह?
बढ़ता धीरे-धीरे पथराया मन
साँस रुकी-हौसला
दरक रहा : वे आते होंगे-
ले जाएँगे...
कुछ-क्या-कोई-किसे-कौन?...