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आती हुई हवा का / सुनीता जैन

आती हुई हवा ठंडी का
कैसे विश्वास करें न
कैसे तन सिहरे न
कैसे मन रीझे न

कितने लम्बे युग पीछे,
आई थी वह घर इठलाती

हाथों में फूल खिलाती
स...रे...ग...म...प प्रूार को
पग-पग में गुँजाती

जाती हुई हवा को
अब सूची दें क्या उसके
छल की,
घातों की,
दोहरी तिहरी,
बातों की जो
बातें थीं बस
कोरी