आत्मन् बहुत समय से कुछ कहना चाहता था
आत्मन् जन्मों से कहने से रुका हुआ था
हर जन्म में कहने को उसके कंठ काँपते
और जिह्वा फड़कती थी
उसको दृश्यमान सब दृश्य दिखते थे
उन दृश्यों में शामिल अन्य दृश्य
और अदृश्य दिखते थे
दृश्य में दृश्य से ज्योतित उसकी आँख में
पवित्र जल भर-भर आता था
झर-झर रोता
हर जन्म में असहाय आत्मन् चुप रह जाता था !