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आत्मन‌‌‌! ऎसे ही / प्रकाश

नदी भागी जाती है
सागर की ओर
पाँवों पर झुक कर
लीन हो जाती है
यह नमस्कार की नित्यलीला है

आत्म‌न
ऎसे ही नमस्कार करता हूँ ।