चारों खूँट फैला
तप रहा मरूथल
आवें की तरह भीतर ही भीतर
क्या पकाता है ?
बोलो, तुम्हीं कुछ बोलो,
प्रजापति !
मेरी आत्मा के गर्भ में
क्या धर दिया पकने
मेरे ही पसार के चाक पर घड़ कर ?
ये आवाँ कभी तो खोलो,
प्रजापति !
मुझ में कभी तो हो लो !
(1982)