किसे मालूम कितना अभी बाकी
पैंडे का नहीं है अंत कोई
और ऊपर चिलचिलाती धूप है यह
आग बरसाती
-नहीं, हारा नहीं हूँ, कुछ
थक रहा हूँ।
कहो तो कुछ देर थम लें
पीपली की छाँह गहरी
तुम्हारे हाथ पोया बाजरे का एक टिक्कड़
आँखों-से चमकते कटोरे में प्यार-सी गुड़राब
और तुम्हारे साथ के विश्वास-से गहरे कुएँ का
निर्मल, शीतल जल !
देखना, सब ओर पसरा, दहकता
आग का यह कुण्ड अब भी
आत्मा-सा खिल उठेगा।
(1983)