मेरी आत्मशक्ति मुझसे कहती
बांहे पसार ये नभ छू ले,
तेरे पग न हटे धरती से कभी
पर अम्बर से जा मिल ले गले...
है विस्तृत ये ब्रह्मांड अनंत
स्वयं का विस्तार तू कर लेना
भले भूमंडल संकीर्ण दिखे
पर हृदय धरा का हर लेना...
मनु संपोषित महि से ही सदा
बुद्धि संचित यह ज्ञान रहे,
बहुमूल्य पवन जीवन हेतु
जड़ भूमिगत संज्ञान रहे...
इस वसंुधरा से अम्बर तक
ज्योतिर्मय बिम्ब तू बन जाना
नित नव ब्रह्मांड जो सृज रहा
उस ब्रह्म से प्रीत लगा आना...
क्यूँ पार्थिवता में विचर रहा
वही ब्रह्म, पिता परमात्मा है
निज बंधन गूढ़ रहस्यों का
वह अनंत, तू बिन्दू आत्मा है...
है विस्मित ज्ञान, रहस्य नहीं
विस्तृत भौतिक विज्ञान है
कर मूलशक्ति का अवलोकन
खगोलीय उर्जा ही भगवान है...