Last modified on 17 जुलाई 2008, at 22:29

आत्म-निरीक्षण / महेन्द्र भटनागर

जीवन भर
कुछ भी
अच्छा नहीं किया !
ऐसे तो
जी लेते हैं सब,
कुछ भी लोकोत्तर
जीवन नहीं जिया !
अपने में ही
रहा रमा,
हे सृष्टा !
करना सदय क्षमा !