समझ में आ जाना
कुछ नहीं है
भीतर समझ लेने के बाद
एक बेचैनी होनी चाहिए
कि समझ
कितना जोड़ रही है
हमें दूसरों से
वह दूसरा
फूल कहो कविता कहो
पेड़ कहो फल कहो
असल कहो बीज कहो
आख़िरकार
आदमी है !
समझ में आ जाना
कुछ नहीं है
भीतर समझ लेने के बाद
एक बेचैनी होनी चाहिए
कि समझ
कितना जोड़ रही है
हमें दूसरों से
वह दूसरा
फूल कहो कविता कहो
पेड़ कहो फल कहो
असल कहो बीज कहो
आख़िरकार
आदमी है !