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आदतें / नासिर अहमद सिकंदर

अमूमन
आदतें बुरी नहीं
होतीं अच्छी भी
कुछ का अनुसरण आवश्यक
तो कुछ का
छोड़ना हितकर
अब
जैसे कि मैं
शराब न छोड़ पाऊँ
छोड़नी चाहिये सिगरेट
यदि मुश्किल सिगरेट
तो शराब
विलंब से खाना खाने की आदत
जो रही उम्र भर
छोड़नी चाहिये
उम्र देखकर
या यह जो
समय पर नहीं लौटना हुआ घर कभी
छोड़ना चाहिये
समय रहते
होटलों में बैठ
चाय बेहिसाब
स्वाद
चटखारा
छोड़ना चाहिये
वक्त-बेवक्त
बहस-मुबाहिसे
गपशप
बकबक
छोड़ना चाहिये
भावनाओं में बह जो हुआ परेशान
मन संवेदन ऐसा
छोड़ना चाहिये
तय नहीं कर पा रहा
लगातार
चिड़चिड़ा होता स्वभाव त्याजूं
कि अपनापन
कि दोस्ताना
कवि जी !
आदतें छोड़ने के ही ब्योरे देंगे
तो एक बात कहूं
सच्ची-सच्ची
आपकी
कविता का सार है
संघर्ष से परे
जड़ता भी एक आदत
इस पर आपका
क्या विचार है !