आदमी देखते हैं
अपनी दिशाओं के दर्पण में
दौड़ते आ रहे कल को
कायर निकम्मे डरते हैं
इस आ रहे कल से बचने के लिए
रचनाकाल: २७-०७-१९६९
आदमी देखते हैं
अपनी दिशाओं के दर्पण में
दौड़ते आ रहे कल को
कायर निकम्मे डरते हैं
इस आ रहे कल से बचने के लिए
रचनाकाल: २७-०७-१९६९