हाम कोय आदमी जिसे काम करैं उसाए उसका नाम धरदयां सां भोले आदमी न गधे की उपमा और डरपोक न गादड़ कहां सां जानवर इस बात पै एतराज करण लागगे के आदमी म्हारे तैं अपणी तुलना क्यूं करैं सैं। उन्नै पंचायत बुलाई और फैसला कर्या के जानवर अपणे साथियां का नाम कदे भी आदमी ना धरैंगें। इस कविता में जानवरों पर आधारित मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग किया गया है।
जंगल म्हं टेकड़े ऊपर जानवरां नै पंचायत जुटाई
गादड़ लोमड़ शेर गधा मुस्सा गा भैंस बुलाई
चीहल गिरझ औेर मुरगा आग्ये बांगां तै कोयल बी आई
सांप और कव्वा पहरा दे रहे ऊंट की पीठ पर गिरझ बिठाई
शेर आपणे आसन्न पै बैठ्या गधे नै मन्त्री की पदवी थ्याई
खरगोश कलम दे बणाया मुन्शी लिखणे लग्या सारी कारवाई
मुकदमें पेश करो नम्बरवार गधे नै फेर आवाज लगाई
फेर सात सलाम कर गादड़ बोल्या आदमी हो लिया घणा अन्याई
हर डरपोक नै गादड़ कहता अर मैं राजा बिन डरता नाहीं
गां बोल्ली मन्नै माता कहन्दा इब कुरड़ियां की राह दिखाई
किसी की समझ म्हं कुछ ना आवै तो कहैं भैंस कै आगै बीन बजाई
उल्ट बुद्धि ने कहं उल्लू का पट्ठा मेरी इज्जत कती गिराई
शरमाता मैं बाहर ना लिकड़ूं रात म्हं ही करता पेट भराई
गिरें हुए माणस नै कुत्ता क्यूं कहते उल्टा हटे बन्दर घुड़की कहाई
कव्वा अर कोयल दोनूं बोल्ले म्हारी खानदानी दुश्मनी कराई
बोल्या ऊंट ना मूंह जीरा घाल्या गधे नै कदे न पंजीरी खाई
मेरे बोल्ले पर उठता कोन्या मुरगे नै फेर बांग लगाई
लोबड़ कहं ये शेर सिंह नाम धरैं क्यूं दिखै शेर छावै मुरदाई
सब जनता की फरियाद सही कहै मुस्सा मेरे न हल्दी थ्याई
चीहल झप्पटे नै क्यूं रोवै गिरझ की आंख कै नजर लगाई
दूध देऊं अर बरतूं हलीमी लोग कहं बकरी मिमिआई
फेर फण ठाकै सांपण चाल्ली बीच म्ंह आकै फुफकार लगाई
गर्भ गिरावै उन्ह नागण कहते मन्नै कद बिन जामी बेटी खाई
सेम सेम के नारै गूंजे गधे ने बी जोर की हुचकी आई
राजा दहाड़ा चुप कराए क्यूं पंचायत की पार्लियामैंट बनाई
फेर गंभीर आवाज म्हं शेर गुर्राया शुशा लिखो फैसला शाही
कोए कितणे नाम धरो थारे, पर तम आदमी नाम ना धरियो भाई