मैंने
शव लाद दिया
शब्दों की पीठ पर
मोटर से कुचल गए
मानुस का
और फिर
चला गया घर
शान्त हुआ मन
जैसे कुछ हुआ नहीं
आदमी मरा नहीं,
रचनाकाल: १२-०६-१९७२, रात ९:३० बजे, मद्रास
मैंने
शव लाद दिया
शब्दों की पीठ पर
मोटर से कुचल गए
मानुस का
और फिर
चला गया घर
शान्त हुआ मन
जैसे कुछ हुआ नहीं
आदमी मरा नहीं,
रचनाकाल: १२-०६-१९७२, रात ९:३० बजे, मद्रास