Last modified on 9 जनवरी 2011, at 23:04

आदमी मरा नहीं / केदारनाथ अग्रवाल

मैंने
शव लाद दिया
शब्दों की पीठ पर
मोटर से कुचल गए
मानुस का
और फिर
चला गया घर
शान्त हुआ मन
जैसे कुछ हुआ नहीं
आदमी मरा नहीं,

रचनाकाल: १२-०६-१९७२, रात ९:३० बजे, मद्रास