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आदिम पदार्थ / दिनेश कुमार शुक्ल

गहरी गगन-गुफा के भीतर
आदिम और अनादि अग्नि में
जलता गलता और उबलता
रहता है आदिम पदार्थ ही

हम भी उसी पदार्थ के बने
हम भी उतने ही अनादि हैं
जितना कालातीत सृष्टि का
सबसे प्रथम खगोल-पिण्ड है

हम भी गलते ढलते रहते
त्रयतापों में और ढालते रहते
अपने संवेदन की द्रवित धातु से
अगणित प्रति-संसार!

वही तत्व उस सूरज में, उस निहारिका में
वही तत्त्व इस मसि-कागद में
वही तत्त्व इसको पढ़ने वाली आँखों की पुतली में है

पढ़ने वाली आँखें लेकिन
पढ़ कर ऐसा कुछ रचती हैं
जो अब तक इस सकल सृष्टि में
कहीं नहीं था!