आदि अनादी मेरा साईं॥
दृष्ट न मुष्ट है, अगम, अगोचर, यह सब माया उनहीं माईं।
जो बनमाली सीचै मूल, सहजै पिवै डाल फल फूल॥
जो नरपतिको गिरह बुलावै, सेना सकल सहज ही आवै।
जो कोई कर भानु प्रकासै, तौ निसि तारा सहजहि नासै॥
गरुड़-पंख जो घरमें लावै, सर्प जाति रहने नहिं पावै।
'दरिया' सुमरौ एकहि राम, एक राम सारै सब काम॥