Last modified on 31 मई 2009, at 18:47

आनन्दी / मानिक बच्छावत

आनन्दी
सबको आनन्द देती है
वह सबसे अच्छा व्यवहार करती है
सबको समान दृष्टि से देखती है
अपने ग्राहकों को देवता समझती है
पूजा-पाठ करती है
सुबह मन्दिर जाती है
शाम को सज-धज कर बैठ जाती है
जो भी ग्राहक आता है
सन्तुष्ट होकर जाता है
इसलिए लौटकर आता है

कुछ कभी-कभी आते हैं
कुछ नियमित हैं
वह उनसे उनके परिवार का हाल्चाल पूछती है
उनके सुख-दुख में शामिल होती है
लगता है जैसे वे
उसके अपने हों
वह एक निष्ठावान सेक्स-वर्कर है
अपना धर्म मिभाती है
हँसती-गाती है
ग्राहकों का मन बहलाती है
जब अकेली होती है तो
रोने लग जाती है
अधूरे सपनों में
खो जाती है।