मन तो टूटी हुई झोपड़ी सा ही था
तुम जो आकर बसे तो महल हो गया
यूँ तो दुनियाँ मेरी खुशनुमा सी न थी
तुम जो आए तो मौसम बदल सा गया
दिल में अपने छिपाकर चला हम किए
झूठ कितने तुम्हारे बहाने कई
पास तुमको बिठाकर सुनाने को थे
कितने नग़मे तराने फसाने कई
यूँ तो आँखों में पहले भी थे रतजगे
ख़्वाब जो भी दिखा वो सफ़ल हो गया
मन तो टूटी हुई झोपड़ी सा ही था
तुम जो आकर बसे तो महल हो गया
पास आकर मेरे गुनगुनाना तेरा
यूँ ही हँसना हँसना रुलाना तेरा
जैसे छूकर गयी हो बसन्ती पवन
पास आकर यूँ ही लौट जाना तेरा
रूप तेरा सलोना मुझे जब दिखा
मन मेरा ख़ुद ब ख़ुद ही गजल हो गया
मन तो टूटी हुई झोपड़ी सा ही था
तुम जो आकर बसे तो महल हो गया
मेरे मन मे अजाने ही पीड़ा जगी
तुमने आँखों में काजल लगाया
ये नयन दो तुम्हारे मेरे तीर्थ है
इनके दर्शन को मन ये विकल है अभी
यूँ तो राहों मे आईं कई मुश्किलें
तुमको पाया तो जीवन सरल हो गया
मन तो टूटी हुई झोपड़ी सा ही था
तुम जो आकर बसे तो महल हो गया