हर नवीन के फूल पुरातन की कब्रों पर खिलते हैं
हर एक नया निर्माण पुराने ध्वंसों पर होता है
कुछ ऐसी जल्दी है इस समय-बटोही को चलने की
कि वर्तमान के कंधों पर वह अतीत का बोझ नहीं ढोता है
हम पतझर बन कर जीर्ण पुरातन ध्वस्त किए जाते हैं
तुम बन बहार फिर नए फूल विकसा देना
हम संध्या बनकर काला सूरज अस्त किये जाते हैं
तुम बन प्रभात फिर सूरज सुर्ख़ उगा देना।
सबके सुख के एक सपने के लिए हम लड़ रहे हैं
तुम बढ़ाना उसे मंजिल तक अभी जिस राह पर हम बढ़ रहे हैं
तुम नई फसल बो पाओ, वह उग पाए इसीलिए
काट करके जंगली पौधे तुम्हारे खेत को तैयार ही हम कर रहे हैं
हम क्रांति ज्वाल बन इस निज़ाम में आग लगाए जाते हैं
तुम शांति मेघ बन नई व्यवस्था को सरसा देना
हम संध्या बनकर काला सूरज अस्त किये जाते हैं
तुम बन प्रभात फिर सूरज सुर्ख़ उगा देना।