आपस में मक्कारी थी
लौट आया लाचारी थी
मैंने समझा यारी थी
अब समझा गद्दारी थी
दुनिया से मतलब न था
ऐसी दुनियादारी थी
हत्यारे थे जुटे हुए
संसद लगी बेचारी थी
पूरी बस्ती जला गई
ऐसी वह चिंगारी थी
इतने क्यों गुमसुम थे तुम
चलने की तैयारी थी
अमरेन्दर तक मार खा गया
ऐसी मारा-मारी थी।