आप अधूरों की कहते,
पर क्या भविष्य है इन पूरों का?
सगा नहीं रह गया समय अब
कहीं किसी का।
आदम की औलाद
हुआ जा रहा बिजूका।
हुए पचासों साल न पलटा भाग्य
हमारे इन घूरों का,
हम तो जन्मों से कुजात,
पर क्या होगा मीरा, सूरांे का?
किसकी खोज-खबर लेने जाए हरकारा?
तूती की मानिंद बज रहा है नक्कारा।
कहीं ठिकाना नहीं रह गया
बच्चों की परियों, हूरों का।
फितरत के मारे हैं सारे लँगड़े-लूले,
अपने में ही मगन फिर रहे फूले-फूले।
मूसा होने का दम भरते-
पता नहीं जिनको तूरों का।