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जब मैं महकते फूलों से
खिला हुआ दिखता हूँ
तो आप मेरी सराहना करते हैं ।
मेरी घनी छाँव में
पनाह लेकर
आनंदित होते हैं
मगर तब
आप नहीं जानते कि
अंदर से मैं रिक्त होता हूँ !
और जब
बहार चली जाती है
पतझड़ मुझे सूना कर देती है
तो मेरे पास कोई नहीं आता !
मगर तब
आप नहीं जानते कि
अंदर से मैं खिलने लगता हूँ !
आप तो
हर बार
बसंत का अंत ही देख पाते हैं
आरंभ कभी नहीं !