आबहु आऊ अहां अशेष,
बड़ सहलहुं अछि आब कलेष,
मेटल ठोप, बहल दृग अंजन
नहिं आओल अछि किछु संदेश।
बीतल दिन बीतल ऋतु चारि
अंकुर निकसल धरती फारि
पुलकित सब कुंठित हम छी
बाटि तकैत गेल फाटि कुहेस।
स्नेहसिक्त लोचन स्वामी के
आलिंगन दुनू प्राणी के
नयन कलश में भरल अश्रु-जल
पुलकित मन अर्पण प्राणेश।