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आबिच्योरी आफ जादूगोड़ा / महाभूत चन्दन राय

हुल जोहार...
हम जादूगोड़िया आदि-वासी है
जादूगोड़ा की जादुई मिटटी के जादूगर
हम तुम्हारी धृतराष्ट्री राष्ट्रवादिता के
अधिकृत महज ’एक शौचालय घर’ है
तुम्हारी ढैठ-कायर-नीच दोमुँहा राष्ट्रपरायणता की
वासनाई पुसंत्व के सताए सौतेले वन-ग्राम
अपने ही देश में जलावतनी हम
जल रहे है रोटी-रोजगार-यूरेनियम में !

तुम्हारा राष्ट्रवाद यूरेनियम खनन का पेटू है !
और हम यूरेनियम से परिगलित वो दहकते वनफूल है
जहाँ तुम्हारी बहरुपिए कर्तव्य-क्षेत्रों का गन्दा ख़ून
हमारी आत्माओं का रोज़ नाभिकीय विघटन करता है
और हमारी हड्डियों में रोज़ यूरेनियम का संक्रामक घोलता है
तुम्हारा घिनौना पीला रेडियो-एक्टिव पाप
हमारी बेटियों के रजस्वला में रोप रहा है
पीले नरक के पीले ढढढ़े
तुम्हारे यूरेनियम ने "मरू-बाँझ" बना दी
हमारी बहुओं की कोख
और हमारी माँ के स्तनों से टपकता उजास
उसे भी तो नहीं छोड़ा
तुम्हारे यूरेनियम-235 ने चबा लिया हमारा बचपन !

तुम्हारी सामन्ती निजीकरण का गुहान्धकार
तुम्हारा सम्वैधानिक ’बाप के माल वाला’ वन-अधिग्रहण
स्वतंत्रता-समानता-न्याय का तुम्हारा ढोंगीपन
हमारे अखड़ाओं की अकाल-मृत्यु
तुम्हारी सभ्यता की दरिद्रता का परिचायक है
हमारे पूर्वजों के ख़ून-पसीने से सिंची मिटटी पर
तुम्हारी कबाड़ राष्ट्रीयता का कचरा-निष्पादन
मुद्रा-स्फीति के होपलों से हमारे रीझरंगों का उपभोग-भोग
हमारी खेइलडेगा के क़त्लगाहों का अनुमोदन
तुम्हारी रेडियो-धर्मिता वाली अर्थव्यवस्था का नंगापन है
जो हमारे जीवन के अन्धेरों को छाँट सकने लायक
सन्ताप की एक नन्ही डिबरी भी जला नहीं पाती !

अरण्य-हत्यारो !
नीतियों के नकदी-कुमारो !
तुम्हारा ’आदिवासी’ अपहरणकर्ता राष्ट्रवाद
बनाना चाहता है हमें अपना ’ओनरशिप बण्डल’
तुमने हमारा कोयला लूटा
तुम्हारी जी० डी० पी० हमारा बाक्साईट निगल गई
तुम्हारी उपनिवेशिक भूख
गटक कर गई हमारा अभ्रक
रोज़ अपने जंगलों में किलसते-तड़पते हम आदि-ग्रामीण
’वन-मरघट में पड़ा मृत-भारत हैं ’

तुम्हारा आदिवासियत वियोग चलित्तरी सहकारिता है
जिसकी मुद्रपासन राजनैतिक लाघव-पन्थी ने छीन ली
हमारे प्राण-प्यारे जंगलों के अधरों की मुस्कराहट
तुम्हारी बीमार राष्ट्रवाद की अधिग्रहणी जरासिम ने
हमारे आदि-ग्रामों को बना दिया है कंकाल-गढ़
तुम्हारी उपनिवैशिक माँस-भूख ने हमारे पर्वत खा डाले
और विनिमय की रक्त-पिपासु नीतियाँ
पी गई माँ सी दिल-अजीज हमारी नदियाँ !

आह रे ! ताजा महकता बेंग साग
हाय ! करहाते पलाश के फूल
पाला था जिसे अपनी छातियों से लगा के
आह ! तुमने हमारे जीवन के रंग भी हर लिए
महुए की दर्द से बिलखती आवाज़ पर
कौन सा मृत्यु-गीत गाएँ हम
केन्दु के फल विष पीकर मर गए चुपचाप
ख़ामोश तोलोंग इस वन-संहार पर
हाय छाती पीटो रे
संखुए की पीड़ा कैसे भी रीते रे
"साल" जो था हमारी प्राण-वायु
उसके प्राण भी हर लिए
कैसे अपनों की लाशों पर चुप रह जाएँ हम
आओ वनमित्रो थूको इन पर चिल्लाओ
“टू हैल विद योर राष्ट्रवाद”
“टू हैल विद योर कैपिटलिज्म”
आदिवासियत से खुख्खल इंसानियत के कंगालों
हमारे जंगल ख़ाली करो
जंगल हमारी आत्मा है
और हम अपनी आत्मा का सौदा नहीं करते !

तुमने हमारी ज़मीनें छीनी जंगल लूटे
हमारी छीपियों से छीन लिए हमारे निवाले
हमारे फूस के झोपड़े जला डाले
तुमने हमारी बेटियों के गुप्तांगों में
लोकतन्त्र के पत्थर ठोके
जब चाहा जहाँ चाहा तुम्हारे संविधान ने किया
हमारी नाबालिग बेटियों से बलात्कार

क्योंकि हमारे पास भूख थी
......भुखमरी थी !
हमने गोलियाँ खाईं
.....रक्त की भूखी गोलियाँ बेचारी !
गोलियाँ खाई....गोलियाँ
गोलियाँ सीने पर !

हमारे पास माँ थी
हमें हर हाल में बचाना था अपनी माँ को
तुम्हारे "लोकतन्त्र और सविधान" से
हमने आवाज़ उठाई
हम चीख़े बेतहाशा अपना कण्ठ फाड़कर
क्योंकि तुम्हारे पास "कानून" था
ख़ून पीने वाला "आदिवासी-खोर" कानून
तुमने हमें "नक्सलवादी" करार दिया
हम नहीं माने
हमने बगावत की ज़िद की बेतहाशा
तुमने हमें "माओवादी" करार दिया
हमने मरघट में बैठ कर भी पढ़े
सिर्फ़ प्रेम के "शब्द-भाषा-संगीत"
हमने मरघटों को अपना विद्या-पीठ बनाया
और तुमने बना दिया हमारे बच्चों की
विद्यापीठ को भी मरघट
हाँ अब हमने उठा ली है तुम्हारे ख़िलाफ़ ’बन्दूक’
हमें हर हाल में बचाना है ’माँ’ को
तुम जो समझते हो तमंचो की भाषा
लो धायँ....धायँ....धायँ

हमारी जीभ हमारी प्रतिरक्षा है
हमारी आत्मा से नहीं छूटता हमारा आदिवासीपन
तुम रखो तुम्हारी दो टके की अम्बेडकरी
तुम्हारा पाँच पैसे वाला मार्क्सनिज्म
तुम्हारी दोगली वामपंथिकता
तुम्हारा कन्फ़्यूज कम्युनिज्म
अन्धी राष्ट्र-प्रतिबद्धता के काणे आकाओं
तुम क्या पढ़ोगे हमारी देह पर उगा पीला फफोलापन
लाओ ’फ़ैटमैन’ के से अणु पिशाच
लिटिल बॉय के से परमाणु बम्ब
एक नया प्रस्ताव प्रपत्र अपने संसद में पारित करो
और आओ हमें एक दम एक साथ उड़ा दो
नागासाकी और हिरोशिमा की तरह चीथड़े -चीथड़े !

आओ हमारी आदी संस्कृति के दलालो !
आओ अपने व्यापारिक कैमरों के साथ आओ
हमारी संस्कृति का पोर्निकरण करो
नंगे जिस्मों को दुहो
एक सुपरहिट धरावाहिक बनाओ और बेचो
अपने बाज़ारों में करो हमारे दुखों को भूगोलिकरण
करो हमारी गणनाएँ
खोलों नया आदिवासी विकास प्राधिकरण
पढ़ो पूंजीवादी पहाड़े
करो हमारा धर्मान्तरण
गोलियाँ दागो..
दागो बुज़दिलों !

यह कविता हमारे पीले फफोलों का कर्सद-गीत है
यह कविता एक वैधानिक चेतावनी है
यूरेनियम से लिसड़े-लिथड़े से चूते घावो का युद्ध-घोष
एक खुला सार्वजनिक विद्रोह-पत्र
यह कविता मुखाग्नि है
तुम्हारी पार्थिव पड़ी आदिवासी कर्तव्य-निष्ठां को
एक श्राद्ध-कर्म है
लोकतन्त्र और संविधान की असमय-मृत्यु पर
यह कविता एक कालिख पोतने की कोशिश
तुम्हारी डर्टी पालिटिक्स के आइसोटोपिक चेहरे पर
यह कविता एक त्यागपत्र है
तुम्हारी समूची कल्ट मानवाधिकारों की बाज़ारू सूची से
यह कविता हमारे इनकार का दिनांकन हैं
तुम्हारे भरत-मिलाप वाले धूर्त अध्यादेशों से
यह कविता दहकते वनफूलों की संघर्ष-गाथा है
"आबिच्योरी आफ जादूगोड़ा"
यह कविता उलगुलानों के अंधकारमय समय में
एक सच्चे “भूमकाल” की तलाश है
हमारे ख़ून से लिखा ” एक लाल सलाम”

उठो बढ़ो लड़ो लड़ मरो
वनफूलों अपने देह का काला चटख रंग बचाओ
बता दो उन्हें जो आदिवासियत के अनपढ़ है
न हम माओ है
न हम नक्सली
हम महज आदि-वासी है
और यह आदिवासियत हमारी आत्मा से छूटती नहीं