एहसानमन्द हूँ मैं उनकी
जिनसे मैं प्यार नहीं करती।
कितनी तसल्ली रहती है मुझे यह मान लेने में
कि उनकी किसी और से घनिष्ठता है।
कितनी ख़ुशी कि वे भेड़
और मैं भेड़िया नहीं।
कितने सुकून से मैं उनके साथ हूँ,
कितनी आज़ादी उनसे मुझे मिली हुई है,
और ये वे चीज़े हैं जो प्यार हरगिज़ नहीं दे सकता
या छीनकर नहीं ले जा सकता।
मैं उनके इन्तिज़ार में नहीं रहती
खिड़की से दरवाज़े के बीच बेचैनी से टहलती हुई।
उनके साथ मैं
धूपघड़ी की तरह धैर्यवान होती हूँ,
मैं उनके उन मसलों को हमदर्दी से समझ लेती हूँ
जिन्हें प्यार कभी समझ नहीं पाएगा,
मैं क्षमा कर देती हूँ उन चीज़ों को
जिन्हें प्यार कभी क्षमा नहीं करेगा।
उनसे मुलाक़ात और उनकी चिट्ठी के बीच
अनन्तकाल नहीं
महज़ कुछ दिन या हफ़्ते गुज़रते हैं।
उनके साथ यात्रा बड़े मज़े से कटती है,
संगीत सुना जाता है,
गिरजाघर देखे जाते हैं,
जगहें, दृश्य साफ़ नज़र आते हैं।
और जब हम उनसे जुदा होते हैं तो जो
पहाड़ और समुद्र हमारे बीच में हाइल होते हैं,
वही पहाड़ और समुद्र होते हैं जिन्हें हम
नक़्शों पर सहज पहचान लेते हैं।
इन्हीं लोगों के तुफ़ैल से
मैं तीन आयामी जीवन जी रही हूँ,
जी रही हूँ देश और काल में,
स्थान में जो ग़ैर-काव्यात्मक ग़ैर-नाटकीय है
एक वास्तविक क्षितिज के साथ जो कि चलायमान भी है।
उन लोगों को ख़ुद पता नहीं है कि अपने ख़ाली हाथों से
वे मुझे कितना कुछ दे जाते हैं।
अगर पूछा जाए प्यार से
इन लोगो के बारे में, तो प्यार कहेगा :
"मेरा इनसे क्या वास्ता?"
अँग्रेज़ी से अनुवाद : असद ज़ैदी