आभास / श्रीकांत वर्मा

दूर उस अँधेरे में कुछ है, जो बजता है
शायद वह पीपल है ।

वहाँ नदी-घाटों पर थक कोई सोया है
शायद वह यात्रा है

दीप बाल कोई, रतजगा यहाँ करता है
शायद वह निष्ठा है ।

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