Last modified on 28 जून 2017, at 16:29

आभो : सात / ओम पुरोहित ‘कागद’

आभै में फिरै
गजबी बादळिया
गांणी-मांणीं
लियां पाणीं
बरसावै नीं पण छांट
ठाह नीं कांईं है आंट!
तिरसाया नीं मरै
जीव-जंत
आभै रै भरोसै
डरती-डरती
मुरधर धरती
आपरै अंतस
अंवेर लियो पाणीं
लारली बिरखा!