Last modified on 3 अगस्त 2008, at 20:28

आमंत्रण / महेन्द्र भटनागर

मृत्यु —

आना,

एक दिन ज़रूर आना !

और मुझे

अपने उड़नखटोले में

बैठा कर ले जाना;

दूर ... बहुत दूर

नरक में !


जिससे मैं
नरक-वासियों को
संगठित कर सकूँ,
उन्हें विद्रोह के लिए
ललकार सकूँ,
ज़िन्दगी बदलने के लिए
तैयार कर सकूँ !

नहीं मानता मैं

किसी चित्रागुप्त को

किसी यमराज को;

चुनौती दूंगा उन्हें !

बस, ज़रा कूद तो जाऊँ

नरक-कुण्ड में !

मिल जाऊँ

नरक-वासियों के

विशाल झुण्ड में !