Last modified on 1 सितम्बर 2010, at 19:42

आमन्त्रण / रमेश कौशिक

एक दिन क्षणों के आवेश में
तुमने मुझे आमन्त्रण दिया
किन्तु मेरे अहं ने
अपना समर्पण स्वीकार न किया

आज जब मेरा अहं
तिरोहित है
मैं समर्पण को
तत्पर हूँ
आतुर हूँ
किन्तु तुममें
अब वह
आवेश का क्षण कहाँ
जो मुझे
आमन्त्रण दे सके
अंगीकार कर सके