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आमोॅ के लकड़ी कड़ा-कड़ी / अमरेन्द्र

आमोॅ के लकड़ी कड़ा-कड़ी
हथिया दौड़ै तड़ा-तड़ी ।

जंगल के छोटका सब सोचै
जे अच्छा छै, हाथिये नोचै
बोलेॅ के  ? केकरा पड़लोॅ छै
दस के भी आँखे गड़लोॅॅ छै
सिंह सुथारोॅ में छै लागलोॅ
देखै हमरा खड़ा खड़ी
आमोॅ के लकड़ी कड़ा-कड़ी
हथिया दौड़ै तड़ा-तड़ी ।

आबेॅ हिन्नेॅॅ साथें आबोॅ
आपनोॅॅ धुन नै अलग बजाबोॅ
जों जमात नै आपनोॅ होथौं
एकेक करी केॅ सब केॅॅ खैथौं
भालुवो केॅ देखबे करै छौ
हर बातोॅ में अड़ा-अड़ी
आमोॅ के लकड़ी कड़ा-कड़ी
हथिया दौड़ै तड़ा-तड़ी ।